कलकत्ता में जो हावड़ा ब्रिज आप देखते हैं इसे बनाने का सपना अंग्रेजों ने 1855 में देखा था। इसके लिए साल 1870 में कलकत्ता पोर्ट ट्रस्ट बनाया, और 1871 में हावड़ा ब्रिज एक्ट बना कर इसे बनाने का काम शुरू हुआ।
1874 में जब इस पुल का निर्माण हो रहा था तब बहुत ख़तरनाक तूफ़ान आया था, जिससे इस पुल को नुक़सान भी पहुँचा था। लेकिन उसे सही कर उसी साल अक्तूबर में इस पुल को चालू कर दिया गया। रात में इस इस्तेमाल करने के लिए साल 1879 में इस पर बिजली के खंभे भी लगाये गये। लेकिन जब इस पुल पर बोझ बढ़ने लगा तो लोहे का बड़ा पुल बनाया गया, जो आज हावड़ा ब्रिज के रूप में हमारे सामने हैं।
तस्वीर में आपको हावड़ा ब्रिज का पुराना रूप दिख रहा है। जो 1890 के दहाई में खैंची गई थी।
आजतक क्यों नहीं हुआ कोलकाता के हावड़ा ब्रिज का उद्घाटन।
कहा जाता है कि हावड़ा पुल एक कैंटिलीवर पुल है, जो पश्चिम बंगाल में हुगली नदी पर फैला हुआ है। यह एक ब्रैकट ब्रिज एक कैंटिलीवर का उपयोग करके बनाया गया है। इसकी संरचनाएं क्षैतिज रूप से अंतरिक्ष में प्रोजेक्ट करती हैं। इस ब्रिज की संरचना दूर से दिखने में गणितीय संरचना को प्रस्तुत करती है।
इसकी खासियत यह है कि यह ब्रिज 280 फीट ऊंचे दो पिलरों पर टिका हुआ है। इन दोनों पिलरों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट है।
आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन इस पुल से हर रोज लगभग 1 लाख वाहन एवं लगभग डेढ़ लाख पैदल यात्री हुगली नदी को पार करते हैं। पुल का उपयोग करने वाला पहला वाहन ट्राम था। इसके निर्माण के समय, यह तीसरा सबसे लंबा कैंटिलीवर पुल था। अब यह दुनिया में अपने प्रकार का आठवां सबसे लंबे पुल में से एक है।
1874 में शुरू हुए इस पुल को रेलवे के चीफ इंजीनियर ब्रैडफोर्ड लेसली ने डिजाइन किया था.
यह पीपे का पुल 22 लाख रुपये की लागत से बना था। इसकी लंबाई 1528 फीट और चौड़ाई 62 फीट थी। नदी में जब कोई बड़ा जहाज आता था, तब इस पुल को बीच में से खोल दिया जाता था। साल 1906 में हावड़ा स्टेशन बना।
हाउड़ा ब्रिज (Howrah Bridge) कोलकाता (Kolkata), पश्चिम बंगाल, भारत में स्थित एक प्रमुख सेतु है। यह कोलकाता के हाउड़ा नदी (Hooghly River) पर बना हुआ है और भारतीय राष्ट्रीय सड़क 2 (NH2) को जोड़ता है। हाउड़ा ब्रिज अपनी अद्वितीय इमारती शैली और इंजीनियरिंग की वजह से प्रसिद्ध है।
हावड़ा ब्रिज की वास्तुकला
इस आश्चर्यजनक इमारत का निर्माण 1936 में शुरू हुआ और 1942 में समाप्त हुआ। इसका उद्घाटन 3 फरवरी, 1943 को हुआ था। हावड़ा ब्रिज के प्रत्येक खंभे की लंबाई 468 फीट है।
इस पुल में एक भी नट बोल्ट नहीं है और यह अपनी तरह का छठा सबसे बड़ा पुल है। इस पुल का मूल नाम “न्यू हावड़ा ब्रिज” था पर 14 जून 1965 में इसका नाम महाकवि रबीन्द्रनाथ टैगोर की स्मृति में रवींद्र ब्रिज रख दिया गया। आज भी यह हावड़ा ब्रिज के नाम से ज़्यादा जाना जाता है।
टाटा ने की थी स्टील की सप्लाई
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, हावड़ा ब्रिज को बनाने में 26,500 टन स्टील का इस्तेमाल हुआ था, जिसमें से 23,500 टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी. इसकी खासियत यह है कि यह पूरा ब्रिज महज नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पिलरों पर टिका हुआ है. इन दोनों पिलरों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट है. इसके अलावा ब्रिज को सहारा देने के लिए नदी में कहीं कोई पिलर नहीं है.
कीलों का हुआ था इस्तेमाल
हावड़ा ब्रिज की एक खास बात यह भी है कि इसके निर्माण में स्टील की प्लेटों को जोड़ने के लिए नट-बोल्ट नहीं, बल्कि धातु की बनी कीलों का इस्तेमाल किया गया था. साल 2011 में एक रिपोर्ट में सामने आया कि तंबाकू थूकने की वजह से ब्रिज के पायों की मोटाई कम हो रही है. जिसके बाद पुल की सुरक्षा के लिए इसके स्टील के पायों को नीचे से फाइबर ग्लास से ढंक दिया गया. जिसमें करीब 20 लाख रुपये खर्च हुए.